सविनय अवज्ञा आंदोलन | Civil Disobedience Movement In Hindi

सविनय अवज्ञा आंदोलन ( Civil Disobedience Movement In Hindi ) :-
31 दिसंबर 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन हुआ था जिसके अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू को बनाया गया। पंडित जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में भारत के लिए पूर्ण स्वराज्य की मांग रखी गयी।

 

31 दिसंबर 1929 को मध्य रात्रि में रावी नदी के तट पर भारत का तिरंगा फहराया गया। इसी दिन कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में सविनय अवज्ञा आंदोलन की मंजूरी दी गयी।

 

गांधीजी के द्वारा 11 सूत्री मांग :-
31 जनवरी 1930 को गांधीजी के द्वारा भारत के वायसराय लार्ड इरविन के समक्ष 11 सूत्री मांग रखी गयी। इस मांग को भारत के वायसराय अस्वीकार कर दिए जिसके कारण गांधीजी सविनय अवज्ञा किये।

 

सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों शुरू किया गया था ?
नेहरू समिति की रिपोर्ट सरकार द्वारा ठुकराना, विश्व मंदी के कारण किसानों की हालत बिगड़ना, इत्यादि अन्य कारण थे। लेकिन अंग्रेजों के द्वारा नमक कानून लागू करने से जनता में आक्रोश की भावना जाग गई थी। उसके बाद गांधीजी ने आंदोलन को हिंसात्मक होने से बचाने और सरकार पर दबाव बनाने के लिए सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरू किया था।

 

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नमक कानून :-
गांधीजी नमक कानून तोड़ने के लिए 12 मार्च को 1930 को दांडी यात्रा शुरू किये। गांधीजी स्वयं और 78 अन्य सदस्य के साथ अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से पैदल दांडी यात्रा करना शुरू किये। गांधीजी अहमदाबाद से दांडी के लिए 241 मील की यात्रा किए थे।

 

गांधीजी दांडी 5 अप्रैल 1930 को डंडी पंहुचे। उसके एक दिन बाद गांधीजी ने 6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़ा।

 

सविनय अवज्ञा आंदोलन में विरोध :-
सविनय अवज्ञा आंदोलन में विरोध विरोध प्रदर्शन अहिंसात्मक था। विरोध के प्रकार – अंग्रेजो को कर ना देना, सरकारी पद को त्याग करना, विदेशी समानों को बहिस्कार किया जाए और शराब की दुकानों के सामने शांति पूर्ण विरोध प्रदर्शन ।

 

5 मई 1930 को गांधजी को गिरिफ़्तार कर लिया गया। गांधजी को गिरिफ़्तार कर पुणे के झोलापुर जेल में भेज दिया गया । महात्मा गांधजी के गिरिफ़्तार के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व अव्वास तैयब किये थे।

 

सविनय अवज्ञा आंदोलन का परिणाम : – 
ब्रिटिश सरकार इस आंदोलन के अहिंसात्मक तौर – तरीके से हिल गयी थी।  ये आंदोलन इतनी ज्यादा शक्तिशाली थी की इसके बाद ही ब्रिटिश सरकार को लंदन में गोलमेज सम्मलेन बुलानी पड़ी। कई विदेशी कारखाने बंद हुए और देशी उद्योग लगे। देश में महिलाएं की सामाजिक स्थिति बेहतर हो गयी। देशवासियों में राष्ट्रीयता की भावना में वृद्धि हुई।

 

 

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