आर्य समाज की स्थापना किसने किया था ( Arya Samaj Ki Sthapna Kisne Kiya Tha ) ?
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने किया था। आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 को मुंबई में किया गया था।
आर्य समाज :-
आर्य शब्द का अर्थ होता है – श्रेष्ठ, कुलीन, उत्तम। आर्य समाज की स्थापना स्वामी स्वामी विरजानन्द की प्रेरणा से किया गया था। आर्य समाज वैदिक परम्परा में विश्वास रखते थे। आर्य समाज का उद्देश्य था वेदों के अनुकूल चलना या वेदों की ओर चलने के लिए प्रेरित करना।
आर्य समाज का मुख्यालय :-
आर्य समाज का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। आर्य समाज का पहला मुख्यालय मुंबई में था। 1877 में आर्य समाज का मुख्यालय लाहौर में स्थानांतरित किया गया था।
स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम :-
स्वामी दयानंद सरस्वती के बचपन का नाम मूल शंकर था। स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रथम गुरु दण्डी स्वामी पूर्णानंद थे। स्वामी पूर्णानंद ने दयानन्द सरस्वती को संन्यास की दीक्षा दी और मूल शंकर का नाम दयानन्द सरस्वती रखा।
स्वामी दयानंद सरस्वती की रचना : –
स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1874 में संस्कृत भाषा में ‘सत्यार्थ प्रकाश’ की रचना की जिसे आर्य समाज का बाइबिल कहा जाता है।
स्वामी दयानंद सरस्वती के नारे :-
स्वामी दयानंद सरस्वती ने ‘ वेदों की और लोटो ’ और ‘भारत भारतीयों के लिए है ’ जैसे नारे दिए।
दयानंद सरस्वती का विरोध :-
आर्य समाज मूर्ति पूजा को अस्वीकार करता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने पश्चिमी शिक्षा ( Western Education ) का विरोध किया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने सबसे पहले विदेशी वस्तुओं को बहिष्कार किया।
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स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु :-
जोधपुर में कुछ विरोधियों ने दयानन्द सरस्वती को कांच पीसकर पिला दिया जिससे 30 अक्टूबर 1883 को दिवाली के दिन उनकी मृत्यु हो गयी।
स्वामी श्रद्धानन्द, लेखराम और मुंशीराम के नेतृत्व में 1902 में गुरुकुल कांडली ( उत्तराखंड ) की स्थापना की।
दयानंद सरस्वती के शिक्षा सम्बंधित विचार :-
स्वामी दयानंद सरस्वती शिक्षा देते थे कि शिक्षा मनुष्य को ज्ञान, संस्कृति, आत्मनियंत्रण और धार्मिक गुणों को ग्रहण करने में मदद करती है। शिक्षा मनुष्य में विद्यमान छल-कपट और बुरी आदतों को ख़त्म करती है।
स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार :-
स्वामी दयानंद सरस्वती का मानना था कि वेद ईश्वरीय है। दयानंद सरस्वती वेदों में आस्था रखते थे। उनका कहना था कि ईश्वर पुरे विश्व में विद्यमान हैं। उन्होंने ईश्वर, जीव तथा प्रकृति को शाश्वत रूप से अपनाया है।
स्वामी दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचार :-
स्वामी दयानंद सरस्वती भारत के उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने हिन्दू जाति और हिन्दू राष्ट्र के पुनः उत्थान के लिए जन्म लिए थे। उन्होंने जाति प्रथा, मूर्ति पूजा और कुप्रथाओं का विरोध किया था।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने वर्णाश्रम व्यवस्था के समर्थक, नारी अधिकारों की रक्षा, आर्य भाषा और शिक्षा का प्रसार किया था।
स्वामी दयानंद सरस्वती का उद्देश्य :-
स्वामी दयानंद सरस्वती का मुख्य उद्देश्य था कि बाल-विवाह और सती प्रथा जैसी कुरीतियों को दूर करना तथा वेदों की शिक्षाओं को वापस लाना।
स्वामी दयानंद सरस्वती ने मूर्ति पूजा का विरोध क्यों किया ?
स्वामी दयानंद सरस्वती भगवान शंकर पर चढ़ा हुआ प्रसाद को एक चूहे को खाते देखें तो उनके आस्था भाव को ठेस पहुँची। उसी समय से स्वामी दयानंद सरस्वती मूर्ति पूजा का विरोध करने लगे।
स्वामी दयानंद सरस्वती से संबंधित रोचक तथ्य :-
हिंदी भाषा को स्वामी दयानंद सरस्वती ने राष्ट्रभाषा माना है। स्वामी दयानंद सरस्वती को भारत का मार्टिन लूथर कहा जाता है।
स्वामी दयानंद सरस्वती हिन्दू धर्म के अंतर्गत शुद्धि आंदोलन चलाये। स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही सर्वप्रथम ‘स्वराज्य’ शब्द का प्रयोग किया। स्वामी दयानंद सरस्वती ने हिन्दू धर्म के ग्रंथों ( पुराणों ) की प्रमाणिकता को अस्वीकार किया।
स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य लाला लाजपत राय थे। स्वामी दयानंद सरस्वती प्रथम भारतीय थे जिन्होंने वेदों का हिंदी में अनुवाद किया। दासता को स्वामी दयानंद सरस्वती ने भारत का मूल रोग बताया था।