झूम खेती ( Jhum Kheti ) Geography का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है। इस टॉपिक में झूम खेती के बारे में पढ़ेंगे। इसमें झूम खेती ( Jhum Kheti ) से सम्बंधित Facts लिखा गया है। तो चलिए start करते हैं।
झूम खेती ( Jhum Kheti ) किसे कहते हैं ?
समय – समय पर स्थान बदल कर खेती करने की प्रक्रिया को झूम खेती या स्थानांतरीय खेती कहा जाता है। इस खेती के लिए थोड़े – थोड़े समय के अंतर पर खेत बदलते रहते हैं। यह खेती सीढ़ी नुमा होती है।
झूम खेती में सबसे पहले वृक्षों तथा वनस्पतियों को काटकर जला दिया जाता है और भूमि को साफ कर दिया जाता है। साफ की गई भूमि को जुताई करके बीज बो दिया जाता है।
यह फसल प्रकृति पर निर्भर होती है। क्योंकि फसल के लिए पानी की जरुरत होती है। वैसे जगह पर पानी की सुविधा नहीं होती है इसलिए यह फसल प्रकृति पर निर्भर होती है।
झूम खेती में उत्पादन कम होती है। इस मिट्टी में कुछ वर्षो के लिए उर्वरता विद्यमान रहती है। इस मिट्टी में जब तक उर्वरता रहती है तब तक खेती होती है। इस मिट्टी की जब उर्वरता समाप्त हो जाती है तो इस पर खेती करना बंद कर देते हैं।
इसके बाद इस भूमि को छोड़ दिया जाता है जिस पर फिर से पेड़ – पौधें उग आते हैं। किसान अब दूसरी जंगली भूमि को साफ करके कृषि के लिए नई भूमि को तैयार करते हैं। उस पर कुछ ही वर्ष तक खेती की जाती है। इस प्रकार यह स्थानांतरीय खेती कहलाती है।
कृषि की कुछ नई पद्धतियों से वनों का स्थायी रूप से विनाश होता है। अर्थात कृषि की कुछ ऐसी नई – नई तरीके आ रहे हैं जिससे वनों और जंगलों को स्थायी रूप से विनाश कर दिया जाता है। इसका एक उदहारण झूम खेती है। विश्व के अनेक भागों में किसी क्षेत्र विशेष की समस्त वनस्पति काटकर जला दी जाती है।
वनस्पति के जलने के बाद उससे उत्पन्न राख मिट्टी से मिलकर उसकी उर्वरता शक्ति को बढ़ा देती है। इस मृदा में 2 या 3 फसलों को उगाई जाती है। जब मृदा की उर्वरता कम होती है तो किसान नये क्षेत्र को साफ कर वहाँ भी इसी प्रकार की फसल प्राप्त करते हैं।
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झूम खेती ( Jhum Kheti ) कहाँ होती है ?
इस प्रकार की खेती मिजोरम, मेघालय, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और आसाम में होती है। यह खेती पहाड़ी इलाके में सबसे ज्यादा देखने को मिलती है। झूम खेती भारत के पूर्वोत्तर पहाड़ियों में ऐसी खेती की जाती है।
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झूम खेती ( Jhum Kheti ) से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण Facts : –
1. झूम कृषि को English में Slash And Burn Farming कहते हैं। यह एक बहुत ही प्राचीन प्रकार की कृषि है।
2. जिस तरह से स्थानांतरणशील कृषि को भारत में झूम कृषि कहते हैं वैसे ही इसे श्रीलंका में छेना और रोडेशिया में मिलपा कहते हैं।
झूम खेती से नुकसान : – जिस क्षेत्र में झूम कृषि होती है उस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान हुआ है और अभी भी हो रहा है। झूम खेती से लम्बे समय में जमीन की उपजाऊ क्षमता नष्ट हो जाती है। वनों के जलाने से पर्यावरण को भी क्षति पहुँचता है। वायु प्रदुषण बढ़ता है।