शिक्षण की अवधारणा क्या है ? | Shikshan Ki Avdharna

शिक्षण की अवधारणा क्या है ?
✅शिक्षण वह कारण है जिसके माध्यम से लोग इच्छित व्यवहार शैली, कौशल तथा समाज में रहने के लिए बेहतर इच्छित जीवन को प्राप्त करते हैं।

 

✅यह प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक व विद्यार्थी पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए व्यवस्थित मनोवैज्ञानिक मार्ग का अनुसरण करते हैं।

 

✅शिक्षण में वह सभी क्रियाएं है जिससे किसी को शिक्षा प्रदान की जाती है। शिक्षण एक निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिससे बच्चों में मूल्यों का विकास होता है। इस सिखने – सिखाने की प्रक्रिया में शिक्षक का अहम भूमिका होता है।

 

✅शिक्षण एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से शिक्षक छात्र को सैद्धांतिक अवधारणाओं से परिचित करता है। यह शिक्षक से छात्र में ज्ञान का स्थानांतरण है।

 

✅शिक्षक की भूमिका चर्चा के आयोजन द्वारा तथा प्रश्न पूछने का अवसर देकर, कार्यों में सलाह देकर तथा विद्यार्थियों को नूतन मौलिक विचारों के प्रस्तुतीकरण को प्रोत्साहन देकर उनके अंदर ज्ञान, कौशल तथा रचनाशीलता में बृद्धि करने की है।

 

एडम्स के अनुसार शिक्षण एक द्विमुखी प्रक्रिया ( Bi – Polar Process ) है। उनके अनुसार शिक्षण प्रक्रिया के दो केंद्र बिंदु होते हैं – शिक्षक और शिक्षार्थी। इस प्रक्रिया में शिक्षक और शिक्षार्थी एक दूसरे के विकास में सहयोग करते हैं।

 

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कुछ विद्वानों ने शिक्षण की निम्नलिखित परिभाषाएं दी है :-
रायबर्न के अनुसार शिक्षण शिक्षण एक त्रिमुखी प्रक्रिया ( Tri – Polar Process ) है। शिक्षण के तीन केंद्रबिंदु होते हैं – शिक्षक, शिक्षार्थी और विषय वस्तु। शिक्षण इन तीनों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने की प्रक्रिया है।

 

वर्तमान में शिक्षण की अवधारणा : –
पहले बच्चों को शिक्षण डांट कर, उन पर दबाव बनाकर कर दिया जाता था लेकिन वर्तमान समय में ऐसा नहीं है। अब बच्चों को शिक्षण प्रयोग विधि द्वारा समझाकर सहज रूप से दिया जाता है।

 

शिक्षण के उद्देश्य :-
प्रभावी शिक्षण का उद्देश्य इन पांच क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाना है –
1. ज्ञान :-
शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान प्रदान करना है।

2. योग्यता :-
शिक्षण, अधिगमकर्ता में यह योग्यता विकसित करता है कि वह जान सके उसे किस सूचना की आवश्यकता है और उसे वह कहाँ से प्राप्त होगी। इसके साथ – साथ वह जान सके कौन – सी सूचना वैध है तथा कौन – सी वैध नहीं है।

 

3. स्पष्टता तथा व्यवस्थित रूप से समझना :-
✅स्पष्ट रूप से समझना।
✅बेहतर तरीके से तैयार कराना।
✅कठिन विषयों को समझने योग्य बनाना।
✅उदाहरण, व्याख्या, तर्क, संज्ञा, तथा विभिन्न प्रकार से न केवल शिक्षण सामग्री को ✅समझने योग्य बल्कि याद करने योग्य बनाना।
✅पाठ्यक्रम के प्रत्येक विषय को स्पष्टता प्रदान करना।
✅पाठय सामग्री के विषय में संक्षिप्त परिचय देना।

 

4. विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण विकसित करना :-
✅विभिन्न सिद्धांतों के विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर रूप से लागू करने की क्षमता विकसित करना।
✅विचारों तथा अवधारणाओं के भूत, भविष्य व वर्तमान को समझने की क्षमता विकसित करना।
✅सम्बंधित क्षेत्र के तथ्य तथा अवधारणाओं को प्रस्तुत करना।
✅अपने अतिरिक्त अन्य के बिंदुओं को समझकर चर्चा करना।

 

5. गतिशीलता तथा उत्साह आना :-
✅विद्यार्थी को ऊर्जावान तथा बहुआयामी बनाना।
✅शिक्षण को आकर्षक बनाना।
✅शिक्षण क्षेत्र के प्रति लगाव पैदा करना।
✅आत्मविश्वास प्रदान करना।

 

शिक्षण की आधारभूत आवश्यकताएं :-
शिक्षण में मुख्यतः तीन प्रकार के घटक सम्मिलित होते हैं जो निम्न हैं :-
1. आश्रित घटक
2. स्वतंत्र या अनाश्रित घटक
3. मध्यवर्ती घटक

Note :-
✅विद्यार्थी एक आश्रित घटक है।
✅शिक्षण स्वतंत्र घटक है।
✅शिक्षण सामग्री, तरीका, माध्यम तथा प्रयोज्य अन्य तकनीकी मध्यवर्ती घटक है।

 

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