भारत के लिए हिन्द महासागर और हिन्द महासागर की धाराएं भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और भौगोलिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। आज हमलोग हिन्द महासागर ( Hind Mahasagar Ki Jaldhara ) की जलधारा पढ़ेंगे।
हिन्द महासागर की जलधारा ( Hind Mahasagar Ki Jaldhara ) :-
हिन्द महासागर की जलधाराएं सामान्य कारकों से प्रभावित होती है।
हिन्द महासागर की जलधाराओं को दो भागों में बांटा गया है – अस्थायी जलधाराएं और स्थायी जलधाराएं।
अस्थायी धाराएं – विषुवत रेखा के उतर में चलने वाली जलधाराएं अस्थायी धाराएं कहलाती है।
स्थायी धाराएं – विषुवत रेखा के दक्षिण में चलने वाली जलधाराएं स्थायी जलधाराएं कहलाती है।
उत्तरी हिन्द महासागर की जलधाराएं :-
उत्तरी हिन्द महासागर अस्थायी वायु से प्रवाहित होता है। जिससे जलधाराएं भी मौसमी हो जाती है। जलधाराओं के मौसमी प्रवाह के कारण ही विषुवतीय गर्म जलधारा की उत्पति सिर्फ दक्षिणी गोलार्द्ध में जाड़े में होती है।
उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु में हिन्द महासागर के जल पर भारी तापीय प्रभाव रहता है, जिसके कारण उसके जल फैलकर गतिशील हो जाते हैं और यह गति मानसूनी पवनों के अनुरूप होती है।
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उत्तरी हिन्द महासागर में स्थायी पवनों का प्रवाह नहीं हो पाता है, क्योंकि यह तीन तरफ से महाद्वीपों से घिरा हुआ है तथा इसका उत्तरी विस्तार भी कम है इस कारण से यहाँ अन्य महासागरों की तरह उत्तरी विषुवतीय जलधारा का विकास नहीं हो पाता है।
दक्षिण – पश्चिम मानसूनी जलधारा सोमाली के तट से जल लेकर उतर पूर्व की दिशा में अरब सागर की तरफ प्रवाहित होती है। तथा श्रीलंका से मुड़कर पुनः उतर में बंगाल की खाड़ी में प्रवाहित होते हुए इंडोनेशिया से टकराते हुए दक्षिण विषुवतीय जल धारा में मिल जाती है।
हिन्द महासागर की ठंडी धाराएं :-
1. उत्तर-पूर्वी मानसून धारा
2. सोमाली धारा
3. पश्चिम ऑस्ट्रेलियाई धारा
4. दक्षिण हिंद महासागर
हिन्द महासागर की गर्म जलधाराएं :-
1. उत्तर विषुवतरेखीय धारा
2. प्रति विषुवतरेखीय धारा
3. उत्तर पूर्वी मानसूनी धारा
4. दक्षिण पश्चिमी मानसूनी धारा
5. दक्षिण विषुवतरेखीय धारा
6. मेडागास्कर धारा